बाबर (1526-1530)
हुमायूँ (1530-1540 एवं 1555-1556)
अकबर (1556-1605)
13 वर्ष की अल्पायु में अकबर सम्राट बना। उसके शासनकाल को तीन अवधियों में विभाजित किया जा सकता हे।
जहाँगीर ने अकबर के सैन्य अभियानों को आगे बढ़ाया। मेवाड़ के सिसोदिया शासक अमर सिंह ने मुग़लों की सेवा स्वीकार की। इसके बाद सिक्सों, अहोमों और अहमदनगर के खिलाफ़ अभियान चलाए गए, जो पूर्णतः: सफल नहीं हुए।
जहांगीर के शासन के अंतिम वर्षों में राजकुमार खुर्रम, जो बाद में सम्राट शाहजहाँ कहलाया, ने विद्रोह किया। जहांगीर की पत्नी नूरजहाँ ने शाहजहाँ को हाशिए पर धकेलने के प्रयास किए, जो असफल रहे।
शाहजहाँ (1627-1658)
ढक्क्न में शाहजहाँ के अभियान जारी रहे। अफगान अभिजात खान जहान लोदी ने विद्रोह किया और वह पराजित हुआ। अहमदनगर के विरुद्ध अभियान हुआ जिसमें बुंदेलों की हार हुई और ओरछा पर कब्जा कर लिया गया। उत्तर-पश्चिम में बल्ख़ पर कब्जा करने के लिए उजबेगों के विरुद्ध अभियान हुआ जो असफल
रहा। परिणामस्वरूप कांधार सफ़ाविदों के हाथ में चला गया। 1632 में अंततः अहमदनगर को मुगलों के राज्य में मिला लिया गया और बीजापुर की सेनाओं ने सुलह के लिए निवेदन किया। 1657-58 में शाहजहाँ के पुत्रों के बीच
उत्तराधिकार को लेकर झगड़ा शुरू हो गया। इसमें औरंगजेब की विजय चुई और दारा शिकोह समेत उसके तीनों भाइयों को मौत के घाट उतार दिया गया। शाहजहाँ को उसकी शेष ज़िंदगी के लिए आगरा में कैद कर दिया गया।
औरंगज़ेब (1658-1707)
(1) 1663 में उत्तर-पूर्व में अहोमों की पराजय हुई परंतु उन्होंने 1680 में पुनः विद्रोह कर दिया। उत्तर-पश्चिम में यूसफजई और सिक्खों के विरुद्ध अभियानों को अस्थायी सफलता मिली। मारवाड के राठौड़ राजपूतों ने मुग़लों के खिलाफ़ विद्रोह किया। इसका कारण था उनकी आंतरिक राजनीति और उत्तराधिकार के मसलों में मुग़लों का हस्तक्षेप। मराठा सरदार, शिवाजी के विरुद्ध मुग़ल अभियान प्रारंभ में सफल रहे। परंतु औरंगजेब ने शिवाजी का अपमान किया और शिवाजी आगरा स्थित मुग़ल कैदखाने से भाग निकले। उन्होंने अपने को स्वतंत्र शासक घोषित करने के पश्चात् मुग़लों के विरुद्ध पुन: अभियान चलाए। राजकुमार अकबर ने औरंगजेब के विरुद्ध विद्रोह किया, जिसमें उसे मराठों और दककन की सल्तनत का सहयोग मिला। अन्तत: वह सफ़ाविद ईरान भाग गया।
(2) अकबर के विद्रोह के पश्चात् औरंगजेब ने दक्कन के शासकों के विरुद्ध सेनाएँ भेजी। 1685 में बीजापुर और 1687 में गोलकुंडा को मुग़लों ने अपने राज्य में मिला लिया। 1698 में औरंगजेब ने दक्कन में मराठों, जो छापामार पद्धति का उपयोग कर रहे थे, के विरुद्ध अभियान का प्रबंध स्वयं किया। औरंगज़ेब को उत्तर भारत में सिक्खों, जाटों और सतनामियों, उत्तर-पूर्व में अहोमों और दक्कन में मराठों के विद्रोहों का सामना करना
पड़ा। उसकी मृत्यु के पश्चात् उत्तराधिकार के लिए युद्ध शुरू हो गया।
- 1526 में पानीपत के मैदान में इन्नाहिम लोदी एवं उसके अफ़गान समर्थकों को हराया।
- 1527 में खानुवा में राणा सांगा, राजपूत राजाओं और उनके समर्थकों को हराया।
- 1528 में चंदेरी में राजपूतों को हराया।
- अपनी मृत्यु से पहले दिल्ली और आगरा में मुग़ल नियंत्रण स्थापित किया।
- (1) हुमायूं ने अपने पिता की वसीयत के अनुसार जायदाद का बंटवारा किया। प्रत्येक भाई को एक एक प्रांत मिला। उसके भाई मिर्जा कामरान की महत्त्वाकाक्षाओं के कारण हुमायूं अपने अफगान प्रतिद्वंद्वियों के सामने फीका पड़ गया। शेर खान ने हुमायूं को दो बार हराया-1539 में चोसा में और 1540 में कन्नौज में। इन पराजयों ने उसे ईरान की ओर भागने को बाध्य किया।
- (2) ईरान में हुमायूं ने सफ़ाविद शाह की मदद ली। उसने 1555 में दिल्ली पर पुनः कब्ज़ा कर लिया परंतु उससे अगले वर्ष इस इमारत में एक दुर्घटना में उसकी मृत्यु हो गयी।
13 वर्ष की अल्पायु में अकबर सम्राट बना। उसके शासनकाल को तीन अवधियों में विभाजित किया जा सकता हे।
- (1) 1556 और 1570 के मध्य अकबर अपने संरक्षक बैरम ख़ान और अपने घरेलू कर्मचारियों से स्वतंत्र हो गया। उसने सूरी और अन्य अफ़ंगानों, निकटवर्ती राज्यों मालवा और गोंडवाना तथा अपने सौतेले भाई मिर्जा हाक़िम और उज़बेगों के विद्रोहों को दबाने के लिए सैन्य अभियान चलाए। 1568 में सिसौदियों की राजधानी चित्तोड़ और 1569 में रणथम्भौर पर कब्जा कर लिया।
- (2) 1570 और 1585 के मध्य गुजरात के विरुद्ध सैनिक अभियान हुए। इन अभियानों के पश्चात् उसने पूर्व में बिहार, बंगाल और उड़ीसा में अभियान चलाए, जिन्हें 1579-80 में मिर्ज़ा हाक़िम के पक्ष में हुए विद्रोह ने और जटिल कर दिया।
- (3) 1585-1605 के मध्य अकबर के साम्राज्य का विस्तार हुआ। उत्तर-पश्चिम में अभियान चलाए गए। सफ़ाविदों को हराकर कांधार पर कब्जा किया गया ओर कश्मीर को भी जोड़ लिया गया। मिर्जा हाकिम की मृत्यु के पश्चात् काबुल को भी उसने अपने राज्य में मिला लिया। दक्कन में अभियानों की शुरुआत हुई ओर बरार, खानदेश और अहमदनगर के कुछ हिस्सों को भी उसने अपने राज्य में मिला लिया। अपने शासन के अंतिम वर्षो में अकबर की सत्ता राजकुमार सलीम के विद्रोहों के कारण लड़खड़ाई। यही सलीम आगे चलकर सम्राट जहांगीर कहलाया।
जहाँगीर (1605-1627)
जहाँगीर ने अकबर के सैन्य अभियानों को आगे बढ़ाया। मेवाड़ के सिसोदिया शासक अमर सिंह ने मुग़लों की सेवा स्वीकार की। इसके बाद सिक्सों, अहोमों और अहमदनगर के खिलाफ़ अभियान चलाए गए, जो पूर्णतः: सफल नहीं हुए।
जहांगीर के शासन के अंतिम वर्षों में राजकुमार खुर्रम, जो बाद में सम्राट शाहजहाँ कहलाया, ने विद्रोह किया। जहांगीर की पत्नी नूरजहाँ ने शाहजहाँ को हाशिए पर धकेलने के प्रयास किए, जो असफल रहे।
शाहजहाँ (1627-1658)
ढक्क्न में शाहजहाँ के अभियान जारी रहे। अफगान अभिजात खान जहान लोदी ने विद्रोह किया और वह पराजित हुआ। अहमदनगर के विरुद्ध अभियान हुआ जिसमें बुंदेलों की हार हुई और ओरछा पर कब्जा कर लिया गया। उत्तर-पश्चिम में बल्ख़ पर कब्जा करने के लिए उजबेगों के विरुद्ध अभियान हुआ जो असफल
रहा। परिणामस्वरूप कांधार सफ़ाविदों के हाथ में चला गया। 1632 में अंततः अहमदनगर को मुगलों के राज्य में मिला लिया गया और बीजापुर की सेनाओं ने सुलह के लिए निवेदन किया। 1657-58 में शाहजहाँ के पुत्रों के बीच
उत्तराधिकार को लेकर झगड़ा शुरू हो गया। इसमें औरंगजेब की विजय चुई और दारा शिकोह समेत उसके तीनों भाइयों को मौत के घाट उतार दिया गया। शाहजहाँ को उसकी शेष ज़िंदगी के लिए आगरा में कैद कर दिया गया।
औरंगज़ेब (1658-1707)
(1) 1663 में उत्तर-पूर्व में अहोमों की पराजय हुई परंतु उन्होंने 1680 में पुनः विद्रोह कर दिया। उत्तर-पश्चिम में यूसफजई और सिक्खों के विरुद्ध अभियानों को अस्थायी सफलता मिली। मारवाड के राठौड़ राजपूतों ने मुग़लों के खिलाफ़ विद्रोह किया। इसका कारण था उनकी आंतरिक राजनीति और उत्तराधिकार के मसलों में मुग़लों का हस्तक्षेप। मराठा सरदार, शिवाजी के विरुद्ध मुग़ल अभियान प्रारंभ में सफल रहे। परंतु औरंगजेब ने शिवाजी का अपमान किया और शिवाजी आगरा स्थित मुग़ल कैदखाने से भाग निकले। उन्होंने अपने को स्वतंत्र शासक घोषित करने के पश्चात् मुग़लों के विरुद्ध पुन: अभियान चलाए। राजकुमार अकबर ने औरंगजेब के विरुद्ध विद्रोह किया, जिसमें उसे मराठों और दककन की सल्तनत का सहयोग मिला। अन्तत: वह सफ़ाविद ईरान भाग गया।
(2) अकबर के विद्रोह के पश्चात् औरंगजेब ने दक्कन के शासकों के विरुद्ध सेनाएँ भेजी। 1685 में बीजापुर और 1687 में गोलकुंडा को मुग़लों ने अपने राज्य में मिला लिया। 1698 में औरंगजेब ने दक्कन में मराठों, जो छापामार पद्धति का उपयोग कर रहे थे, के विरुद्ध अभियान का प्रबंध स्वयं किया। औरंगज़ेब को उत्तर भारत में सिक्खों, जाटों और सतनामियों, उत्तर-पूर्व में अहोमों और दक्कन में मराठों के विद्रोहों का सामना करना
पड़ा। उसकी मृत्यु के पश्चात् उत्तराधिकार के लिए युद्ध शुरू हो गया।
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